दोस्तों आज हम आप सभी लोगों को इस आर्टिकल मे अनुप्रास अलंकार (anupras alankar) के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है , जैसे की Anupras alankar kise kahate hain और Anupras ke bhed और Udaharan कया है. आज हम यह पे आप सभी लोगों को अनुप्रास अलंकार के बारे मे सभी जानकारी देंगे. यदि आप अनुस्वार के बारे मे सभी जानकारी लेना कहते है तो दोस्तों आप हमारे इस पोस्ट को अंत तक पढे.
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं? (anupras alankar kise kahate hain)
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अनु + प्रास यहां पर अनु का अर्थ होता है बार-बार अप्रास का अर्थ होता है वर्ड जब किसी वर्ड की बार-बार आवृत्ति हो तब जो उसमें चमत्कार उत्पन्न होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं यह अलंकार शब्दालंकार के 6 भेद होते हैं|
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा (anupras alankar ki paribhasha)
अनुप्रास अलंकार में जब किसी व्यंजन वर्ल्ड की आवृत्ति होती है आवृत्ति का अर्थ होता है दोहराना जैसे:- “तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए” इस इस उदाहरण में’त’ वर्ण की लगातार आवृत्ति हो रही है इस कारण से इसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं|
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण (anupras alankar ke udaharan)
- मधुर मधुर मुस्कान मनोहर, अनुज ले सका उजिला |
- रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप,
विश्व बंदर इव घृत उधर जोवत सोवत रूप|
- लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल|
- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए|
- चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही है जल थल में|
- कानन कठिन भयंकर भारी, घूर धाम वारी वारी|
कल कानन कुंडल मोरपखा, उरपा बनवाल विराजत है||
- जीने मित्र दो ही दुखारी, तिन्हही विलोकत पावत भारी ओकत पाठक भारी||
- जीने दुख गिरी सब रज करि जाना, मित्र का दुख रज मेरु समाना||
- विमल बाड़ी ने बीड़ा ली कमल कोमल कर में सुप्रीता|
- शेष महेश दिनेश सुरेश जाहि निरंतर गांवै|
- बंदउ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा|
- मोदित माही पत्ती मंदिर हाय, सेवक सचिव सुमंत बुलाएं |
- प्रसाद की काव्य कानन का कली कहते लागत नजर आती है|
- लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल|
- संसार की समर स्थली में धीरता धारण करो|
- सेस महेस दिनेस सुरेश जा ही निरंतर गांव है|
- प्रतिभा टकाटक खटोले के काटि काटि|
कालिका सी किलकी ,कलऊ देते काल को |
अनुप्रास अलंकार के भेद (anupras alankar ke bhed)
- छेकानुप्रास अलंकार
- वृत्यानुप्रास अलंकार
- लाटानुप्रास अलंकार
- अन्त्यानुप्रास अलंकार
- श्रुत्यानुप्रास अलंकार
छेकानुप्रास अलंकार (chhekanupras alankar)
छेकानुप्रास अलंकार : जिस अलंकार में में एक ही शब्द की आवृत्ति केवल दो बार होती है अर्थात जब एक वर्ड या अनेक अवार्ड की आवृत्ति दो बार होती है तो उसे चेक अनुप्रास कहते हैं|
उदाहरण:–
- तुगं तुगं हिमालय भीगा,
और मैं चंचल गति सूर् सरिता |
- रीझि रीझि, रहस्य रहस्य, हंसी हंसी उठै, सामे मारि आंसु भूरि कहते दई दई|
- सठ सुधहि कल कुसंगति पाई, पारस पारस कुधातु सुहाई|
- जय जय भारत भूमि भवानी, अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी|
- कल कानन कुंडल मोर पखा, उरपै बंनमाल विराजत है|
वृत्यानुप्रास अलंकार (Vratyanupras Alankar)
वृत्यानुप्रास अलंकार : जिस अलंकार में एक ही वर्ड की अनेक बार आवृत्ति होती है उसे वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं|
उदाहरण:–
- मुछत महीवत मंदिर आए
सेवक सचिव सुमंत बुलाए|
- घनन घनन धीरे-धीरे आए बदरा
घनघोर कारी छाई घटा|
- चांदनी चमेली चारुचंद्र सुंदर है|
- खिड़कियों के खड़कने से खड़कता है खड़क सिंह|
- मेरी मीत में जो गीत ना हो|
- कलावती कलावती कलीदजा|
- सत्य सनेहा सील सुख सागर|
- सपने सुनहरे मन भाये|
लाटानुप्रास अलंकार (Latanupras Alankar)
लाटानुप्रास अलंकार : जहां शब्द या वाक्य खंड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो और उसके मूल अर्थ में भेद आ जाए लाटाननुप्रास अलंकार कहलाता है|
उदाहरण:–
- राम ह्रदय जाके नाहीं, विपत्ति सुमंगल ताहि,
राम हृदय जाके, नाही विपत्ति सुमंगल ताहि|
- पूत कपूत तो का धन संचय,
पूत सपूत तो का धन संचय|
- पिय निकट जाके ,नहीं धाम चांदनी ताहि|
पिय निकट जा कि नहीं, धाम चांदनी ताहि||
- लड़का तो लड़का ही है|
- वह मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे|
- मांगी नाव, न केवट आना|
मांगी नाव न, केवट आना||
- पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग ताहेतु
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरक का तेहु |
अन्त्यानुप्रास अलंकार (Antyanupras Alankar)
अन्त्यानुप्रास अलंकार : जहां अंत में तू को मिलती हो वहां पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है अर्थात जिनकी ध्वनि एक जैसी सुनाई दे|
उदाहरण:-
- लगा दी किशन ने आकर आग,
कहां था तू संयम में नाग|
- रघुकुल रीति सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाई|
- जय गिरिजापति दीनदयाला,
सदा करत संतन प्रतिपाला|
- भाल चंद्रमा सोहन वीके,
कानन कुंडल, नागफनी के|
श्रुत्यानुप्रास अलंकार (srutyanupras alankar)
श्रुत्यानुप्रास अलंकार : जहां पर एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाते हैं उसकी आवृत्ति श्रुत्यानुपास अलंकार कहलाता है|
उदाहरण:–
- पापा प्रहार प्रकट कई सोई,
भरी क्रोध जल जाइन जेसी|
- राम कृपा भव निसा हिरानी,
जाके पुनि नख सैहो ||
- दीनांत था, थे दिन नाथ डूबते|
- तुलसीदास सीदति निसदिन तुम्हार निठुराई|
Conclusion
तो आशा करते हैं हम की हमारा ही लिखा हुआ आपको बहुत ही लाभदायक होगा अधिक से अधिक जानकारी अनुप्रास अलंकार के बारे में बताई गई है हमारे ब्लॉग पर आपको हिंदी व्याकरण की संपूर्ण जानकारी देता है साथ ही साथ हमें आसान भाषा भी बताता है हर किसी के अंदर कोई ना कोई गुण होता है बस थोड़ा पता चलने के लिए होती है”|